यमुना घाटी जलविद्युत परियोजना: कोटी इचारी से कुल्हाल तक का पूरा इतिहास
Brijesh Singh Chauhan – देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1949 में Yamuna Valley Hydroelectric Project Stage-I (यमुना घाटी जलविद्युत परियोजना चरण-I) के नाम से इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया गया, लेकिन पैसों की कमी की वजह से इसका काम शुरू नहीं हो पाया, और 1956 जाकर काम शुरू हुआ। लेकिन इसमें फिर एक बाधा आयी, की पंजाब द्वारा ताजेवाला हेड वर्क्स के अपस्ट्रीम में यमुना नदी पर कोच बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिसका असर यमुना घाटी परियोजना पर पड़ सकता था, और काम को रोक दिया लेकिन बाद में भूगर्भीय कारणों से कोच बांध नहीं बनाया जा सका और एक बार फिर 1960-61 में इस प्रोजेक्ट के काम को शुरू किया गया।
1965 में इसका प्रथम चरण कमीशन हुआ, जिसमें Dakpathar Barrage, Dhakrani एवं Dhalipur Power Houses शामिल थे, इसके बाद 1975 में दूसरे चरण के पहले हिस्से में Ichari Dam और Chibro Power House बनकर तैयार हुए, जिसकी कुल क्षमता 240 MW है। और दूसरे चरण का दूसरा हिस्सा 1984 में खोदरी पावर हाउस कमीशन हुआ, जिसकी कुल क्षमता 120 MW है।
और इसका ४था चरण 1975 में कमीशन हुआ, जिसमें आसान बैराज और कुल्हाल पावर हॉउस शामिल है। इस तरह ये पूरा प्रोजेक्ट कोटी इचारी से लेकर कुल्हाल तक पूरा हुआ।
कोटी इचारी से शुरू हुई ये परियोजना कुल्हाल तक जाती है, इस परियोजना की यदि बात की जाये तो सबसे पहले कोटी इचारी में बांध से टोंस नदी का पानी रोककर पानी को सुरंग के रास्ते छिबरो तक पहुंचाया गया है। और छिबरो में 240 मेगावाट का पावर हाउस बनाया गया
और फिर यहां से एक बार फिर से नहर के रास्ते टोंस नदी के नीचे से पानी को खोदरी तक पहुंचाया गया है। और खोदरी में एक 120 मेगावाट का पावर हाउस बनाया गया है, यहां से पानी यमुना नदी में जाकर मिलता है और यमुना नदी पर एक बैराज बनाया गया है। बैराज से यमुना और टोंस नदी के पानी को रोककर शक्ति नहर के रास्ते आगे ले जाया गया है, और ढकरानी में 33.75 मेगावाट का एक पावर हाउस बनाया गया है, इसके बाद पानी को एक बार फिर से शक्ति नहर के रास्ते आगे ले जाया गया और ढालीपुर में एक और पावर हाउस बनाया गया, जिसकी क्षमता 51 मेगावाट है।
इसके बाद पानी यहां से देहरादून की तरफ से आने वाली आसान नदी में जाकर मिलता है और यहां पर एक बैराज बनाया गया है, जिसे आसन बैराज कहा जाता है। पानी को एक बार फिर से नहर के रास्ते आगे ले जाया गया और फिर कुल्हाल में 30 मेगावाट का एक और अंतिम पावर हाउस बनाया गया, इस प्रकार उत्तराखंड में इस परियोजना का ये आखिरी पावर हाउस है। और इस परियोजना में कुल मिलाकर 475 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है।